Short Story -Investigation

कश्मीरी कहानी
तफतीश
(Investigation)


बंसी निर्दोष
रूपान्तरकार : डॉ० शिबन कृष्ण रैणा

तफतीश
अस्पताल, अदालत और पुलिस-थाना! ज़माना भले ही बदल गया हो, किन्तु आज भी लोग चाहे हिन्दू हों या मुसलमान, ऊपर वाले से यही माँगते हैं कि हे प्रभो! इन तीनों से हमें हर समय बचाकर रखना। पुष्करनाथ की माँ पोशकुज जब सुबह-सवेरे राजबाग के हनुमान मन्दिर जाती तो वहाँ उसकी प्रार्थना भी कुछ यही होती-हे शंकर भगवान्! हे राम, चन्द्रजी ? हे वीर हनुमान! मेरी संतान को अस्पताल, अदालत और पुलिस-थाने की गर्दिश से दूर ही रखना। पोशकुज को हनुमान जी पर कुछ ज्यादा ही विश्वास था। उसके मन में यह बात बैठ गई थी कि देवी-देवताओं को मनवाने में देर नहीं लगती। थोड़े-से फल-फूल, मुट्ठी-भर अर्घ्य, पानी का लोटा,बस श्रद्धा के साथ इन्हें देवताओं पर चढ़ाया जाए तो मनोकामनाएँ अवश्य पूरी होती हैं।अभी तक सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, देवी-देवता पोशकुज पर प्रसन्न थे, मगर कल सबह कुछ उल्टा हो गया!

कल शाम को पुलिस पुष्करनाथ को ग़बन के जुर्म में पकड़ कर ले गई। उसके दफ्तर में हेरा-फेरी हुई थी। कुछ असिस्टेण्ट इन्जीनियर, ओवर-सियर और अन्य छोटे-मोटे कर्मचारी गिरफ्त में आ गये थे और उन्हें आधी रात को पुलिस-थाने में पहुँचाया गया था। यह सब-कुछ अचानक हुआ था जिसकी वजह से सुबह होने तक पोशकुज रोने-धोने के सिवा यह फैसला न कर सकी कि अविवाहिता लड़की को लेकर वह किधर जाये? किसके सामने झोली फैलाये और कहे कि उसके बेटे को यों ही पकड़ लिया गया है। वह निर्दोष है।

पुलिस थाने में अपनी किस्म का यह एक नया केस था। इसलिए थाने के अन्दर और बाहर लोग मंडरा रहे थे। मोटर वाले, टाई-वाले, शरीफ़ आदमी, शाइस्ता लोग एक-एक, दो-दो करके अपने-अपने संबंधियों को उसी बेकरारी से थाने के दरवाजे पर निगाहें डाले देखने का प्रयास कर रहे थे जिस तरह अस्पताल के सामने हर सुबह गेट के बाहर लोगों की भीड़ अपने मरीजों से मिलने के लिए भीतर जाने हेतु पंक्तिबद्ध रहती है। पुष्करनाथ से मिलने उसके ममेरे भाई के सिवाय कोई नहीं आया था । वह चाहता भी नहीं था कि कोई उससे मिलने आये। थाने में आकर वह इतना नहीं घबराया था जितना यह सोचकर घबराया कि माताजी और कान्ता को यदि पता लग गया कि उसे हवालात में डाल दिया गया है तो उन पर क्या बीतेगी? समाचार सुनकर पोशकुज की जैसे टाँगें ही टूट गई। आज वह हनुमान मन्दिर नहीं गई। बाहर निकलती तो लोगों को भला क्या मुँह दिखाती ? भीतर-ही-भीतर वह घुट रही थी। उसे इस बात की चिन्ता सताने लगी कि यदि कान्ता के ससुराल वाले सुनेंगे तो क्या मालूम रिश्ता टूट जाए। खुद कान्ता को भी इस बात की चिन्ता थी। उसकी सगाई हो चुकी थी, बस अब शादी अगले महीने होने वाली थी। पोशकुज ने मन-ही-मन हनुमानजी से मन्नत माँगी-जैसे भी हो यह मामला रफादफा हो जाना चाहिए। समधियों को पता चल गया तो बना-बनाया काम बिगड़ जायेगा। पुष्करनाथ का ममेरा भाई सोमनाथ अपने बाप के कहने पर थाने गया था। दरअसल, किसी पड़ोसी ने उन्हें इस घटना के बारे में खबर दे दी थी। सोमनाथ मन में खुश था कि पुष्कर नाथ आज चक्कर में आ गया है। पैसे का बहुत घमण्ड हो गया था उसे! आखिर ऊपर वाला तो सब देखता है। चोरों की चोरी यदि नंगी न हो तो हम जैसे सीधे-सादों को इस समाज में कौन पूछेगा? सोमनाथ को पुष्कर नाथ से इसलिए भी चिढ़ थी क्योंकि उसने हाल ही में सोमनाथ के पिता के लिए बढ़िया किस्म के रफ़ल (ऊनी कपड़े) का 'फिरन' (चोगा) सिलवाया था। तभी तो सोमनाथ का बाप पुष्कर की जब-तब बड़ाई करता रहता- ‘इसे कहते है सपूत! ’सारी उम्र कमाते रहे मगर अपने बाप के लिए एक कमीज तक सिलवा न सके। पुष्कर को देखो। भांजा ही तो है मेरा, मगर मेरा कितना खयाल रखता है! आज जब सोमनाथ ने सुना कि ओवरसियर पुष्कर नाथ को भी पकड़ा गया है, तो उसकी बाछें खिल गई। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। समय से पहले यदि उसे एक इंक्रीमेण्ट मिल जाती तब भी शायद वह इतना प्रसन्न न हुआ होता। एक बार उसके मन में आया कि भाग कर बाप को इतला कर दे कि ‘आपके चहेते भांजे साहब हवालात की हवा खा रहे हैं। बड़ा गुणगान करते थे आप उसका। अब देखिए उसके लच्छन! ’पर उसने ऐसा नहीं किया! थाने के अन्दर तफ़तीश जारी थी। बड़े अफ़सर बड़ों की और छोटे अफसर छोटों की पूछगछ में लगे हुए थे। दरअसल, यह केस ही कुछ ऐसा था। यह चोर-उचक्कों, उठाईगीरों या गिरहकट जैसे सामान्य अपराधियों का केस नहीं था। यह तो राज्यसेवा में काम करने वाले सफेदपोश अधिकारियों और अन्य मुलाजिमों का मामला था। यह सरकारी माल के खुर्द-बुर्द का मामला था। लाखों के गबन का मामला था। सरकार की रकम डकार जाना कोई मामूली बात है? इन लोगों ने समझ क्या रखा है? सरकार और कानून के हाथ बड़े लम्बे होते हैं? 'इन्स्पेक्टर शम्भुनाथ कल से बहुत गुस्से में थे, 'बाप का माल समझ रखा है। इन टाई वालों को समझना चाहिए कि सरकार किसी को नहीं बख्शती। सरकारी माल को हड़पना कोई मामूली जुर्म नहीं है। इसकी रक्षा करने के लिए ही तो हम जैसे पुलिस वाले होते है’। शम्भुनाथ ने जिन कर्मचारियों की तफ़तीश की थी, उनमें पुष्करनाथ भी शामिलथा।

हवालात के अलग-अलग कमरों में आधी रात से ही पूछताछ शुरू हुई थी। पुष्कर की बारी सुबह आई। इन्स्पेक्टर शम्भुनाथ ने पुष्करनाथ को ऊपर से नीचे तक देखा। फिर प्रश्न किया-‘कहाँ के हैं आप? आप का नाम? ‘जी, मैं राजबाग में रहता हूँ। 'पुष्कर ने थकी-सी आवाज में कहा। “राजबाग!' सुनकर इन्स्पेक्टर शम्भुनाथ का चेहरा तमतमा उठा। उन्हें आगा हमाम की सड़ी-सी, गन्दी-सी गली में बने अपने मकान का ध्यान आया। कीचड़ से भरे कूचे जिनमें आवारा फिरने वाली गायों का मल-मूत्र बासता रहता है! 'पहले कहाँ रहते थे? 'शम्भुनाथ ने इस बार कड़ककर कहा। 'पहले हम नवा कदल में किराए के मकान में रहते थे। ’अभी दो साल पहले ही मैंने राजबाग में यह मकान बनाया है।' शम्भुनाथ ने कुछ और भी प्रश्न पूछे। प्रश्न पूछते वक्त वे अपनी मूंछों पर हाथ फेरते और डण्डा घुमाते।’तभी उन्होंने अपने सहायक से कहा-'इसकी जेबों की तलाशी लो। ”बिना किसी विरोध के पुष्करनाथ ने कोट के बटन खोले, टाई ढीली की तथा अपने छोटे से बैग को भी आगे कर दिया। तलाशी लेने पर उसकी जेबों से कुछ दस-दस के नोट, कुछ कागज, एक कंघी तथा चाबियों का एक गुच्छा मिले। कोट की अन्दर वाली जेब से एक पास बुक भी मिली। शम्भुनाथ ने पास बुक के पन्ने पलटे। पुष्कर के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। वह एकदम पीछे हट गया। पास-बुक में काफी-सारी रकम पुष्करनाथ के नाम जमा थी। समय-समय पर कुछ रकम निकाली भी गई थी। कुछ ही दिन पहले जो रक़म निकाली गई थी, उसको देखकर शम्भुनाथ का माथा ठनका। दस हजार रुपये निकाल लेने के बाद भी पास-बुक में लगभग अस्सी हजार रुपये जमा थे। शम्भुनाथ ने आश्चर्य-भिश्रित निगाहों से पुष्करनाथ की ओर देखा। सोचा, इस कल के छोकरे के पास इतना सारा बैंक बैलेन्स! 'किसी और बैंक में भी एकाउण्ट है? 'शम्भुनाथ ने घूरते हुए पूछा। दरअसल, यह वह नजर नहीं थी जो एक पुलिसवाला चोर, उचक्के, जुआरी या नम्बरी बदमाश पर डालता है। इस नजर में इन्स्पेक्टर शम्भुनाथ के अरमानों की मायूसी और तल्खी झलक रही थी। पुष्कर ने कहा-'जी, छोटी बहन के नाम पर एक दूसरे बैंक में एकाउण्ट है।' 'वहाँ कितना पैसा है? ’जवाब सुनने के लिए शम्भुनाथ हद से ज्यादा उत्सुक हो गया। 'जी, बीस हजार। यह पैसा मेरी छोटी बहन कान्ता की शादी के लिए मैंने जमा करवा रखा है। अगले महीने उसकी शादी होने वाली है। "शम्भुनाथ के नथुने फूल गये। एक तिरछी नजर पुष्करनाथ पर डालते हुए उससे पूछा-‘‘आपकी शादी हुई है? ' ‘नहीं, अभी नहीं। पहले मैं अपनी बहन की शादी करना चाहता हूँ, पुष्करनाथ ने सारी बातें सच-सच कह दीं। जिस इन्स्पेक्टर शम्भुनाथ ने बड़े-बड़े नामी चोरों की बोलती बन्द कर दी थी, उसी शम्भुनाथ को पुष्करनाथ की बातें सुनकर लगा कि मानो उसके गाल पर किसी ने जोर का चाँटा मारा हो।’ वह अपने आपको कोसने लगा ।पुष्करनाथ को नौकरी करते हुए अभी पाँच साल ही हुए हैं और बैक-बैलेन्स एक लाख के करीब है। ऊपर से राजबाग जैसी बढ़िया कालोनी में अपना मकान बना लिया है।’ जो घृणा का भाव एक पुलिस वाले की आँखों में अपराधी को पकड़ने के वक्त होता है, वह इस वक्त शम्भूनाथ की आँखों में नहीं था। उसने सोचा कि यदि उसने भी अब तक चोरों, बदमाशों तथा अन्य अपराधियों से रिश्वत ली होती तो उसकी हैसियत भी इस समय पुष्करनाथ की जैसी होती। उसकी आँखों के सामने उसकी जवान बेटी प्रभा घूमने लगी। वह उसके बारे में सोचने लगा। उन रिश्तों के बारे में सोचने लगा जो अच्छा दहेज न दे सकने के कारण टूट गये थे। इस मौके को शम्भुनाथ हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। लड़का उसे पसन्द आ गया। वह तुरन्त घर गया और अपनी पत्नी से उसने मशविरा किया। धनवती को भी लड़का ठीक लगा किन्तु एक शंका व्यक्त की-'प्रभा शायद उस लड़के से शादी करना पसन्द न करे जो हवालात में रहा हो। हवालात वाली बात उसके दिल को दुखा दे!' 'मेरा खयाल है कि उन सबको जमानत पर जल्दी ही छोड़ दिया जाएगा, शम्भुनाथ ने आशा-भरे लहजे में कहा। पुष्कर के प्रति अब उसकी हमदर्दी बढ़ गई थी। 'जमानत पर छोड़ देंगे, सो तो ठीक है। पर यह बात प्रभा से कब तक छिपी रहेगी? कालेज में पढ़ती है, बच्ची तो नहीं है। अगर उसको असलियत का पता चल गया तो वह बहुत बुरा मानेगी। 'धनवती ने अपनी राय जाहिर की। ‘पर यह बात वह कैसे जान पाएगी? उसे कहना ही नहीं है कि लड़का कौन है? बस, इतना कह देना है कि लड़का ओवरसियर है और राजबाग में उसका अपना मकान है’। सुन्दर है,माँ है और एक बहन है। ’ 'जो कहना ही, आप स्वयं कह देना’। मैं कुछ भी नहीं कहूँगी।' धनवती ने कहा। 'कोई बात नहीं, मैं ही कह दंगा।'

शम्भुनाथ किसी भी कीमत पर इस लड़के को हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। उसने मध्यस्थ को बुला कर सारी बातें समझा दीं और उसे पुष्करनाथ के घर रिश्ता पक्का करने के लिए भेजा। उधर, पुष्करनाथ के घर में मातम-सा छाया हुआ था। सारे सगे-सम्बन्धी पहुँच चुके थे। पुष्करनाथ के पकड़े जाने की खबर सब जगह आग की तरह फैल चुकी थी। हर कोई पोशकुज से हमदर्दी जता रहा था। इसी बीच जब नाई(मध्यस्थ) पुष्करनाथ के घर में दाखिल हुआ और उसने पुष्करनाथ की कुण्डली माँगी तो सब एक-दूसरे को विस्फारित नेत्रों से देखने लगे। पहले तो पोशकुज घबरा गई कि कहीं कान्ता के ससुराल वालों ने रिश्ता तोड़ देने का सन्देश न भेजा हो। किन्तु बेटे पुष्करनाथ की कुण्डली की बात सुनकर उसकी जान में जान आ गई। मायूसी के इस माहौल में नाई का उसके घर में प्रवेश करना उसे अच्छा सगुन लगा। पोशकुज सारे काम छोड़कर पुष्कर की कुंडली ढूंढ़ने में लग गई और साथ ही नाई से पूछा, 'भैया, कहाँ से आए हो! कुण्डली किस ने मंगवाई है?" नाई ने ज्यों ही इन्स्पेक्टर शम्भूनाथ का नाम लिया तो पोशकुज मारे खुशी के झूम उठी । मन में सोचा-यह तो रामचन्द्रजी ने मेरी सहायता के लिए स्वयं हनुमान को भेजा है’। अब बला टल गई मेरे लड़के के सिर से! इन्सपेक्टर शम्भुनाथ को मैं अच्छी तरह से जानती हूँ।’ पोशकुज ने ताक में रखी टोकरी में से कुण्डली निकाली और नाई को पाँच रुपये के नोट समेत थमा दी 'खबर जल्दी लाना’। हमने अपनी लड़की की सगाई कर दी है, बस पुष्कर की करनी है’। हमारी तरफ से रिश्ता पक्का ससझ लो’।' पोशकुज एक ही साँस में कह बैठी। उधर, शम्भूनाथ का खयाल था कि पुष्करनाथ की जमानत हो जाएगी और वे दोनों की शादी कर देंगे। मगर, सवाल प्रभा का था। दोनों पति-पत्नी इसी उधेड़बुन में थे।’धनवती चाहती थी कि बेटी को सारी बात समझा दी जाए। वैसे, यह रिश्ता अच्छा है’ हाथ से जाना नहीं चाहिए।’। पिछले दो वर्षों में खूब लड़के देखे- मास्टर भी, प्रोफेसर भी, एकाउण्टेंट भी’। इनमें से कोई पसन्द नहीं आया। पसन्द क्या नहीं आया, उनकी दहेज की माँग से हम ही ढीले पड़ गए! वह अभी यही सब सोच रहे थे कि प्रभा कालेज से आ गयी । उसके साथ उसकी एक सहेली भी थी। धनवती ने पति की ओर देखा जिसका मतलब था कि इस समय बात छेड़ने से कुछ मतलब नहीं निकलेगा। प्रभा के साथ जो सहेली थी उसने शम्भुनाथ को नमस्ते की। प्रभा ने किताबें ताक में रख दीं और पिताजी से अपनी सहेली के बारे में कहा-'इसका नाम कान्ता है। मेरी ही क्लास में पढ़ती है ’ ।' 'अच्छा, अच्छा!' शम्भुनाथ ने ऐसे कहा मानो उसकी सहेली का इस समय आना उसे नागवार गुजरा हो! ‘ये बेचारी इस समय मुसीबत में है, प्रभा ने पिता की ओर देखकर कहा-'कल शाम इसके भाई को पुलिस ने हवालात में डाल दिया।” 'किसको हवालात में डाला? ” शम्भुनाथ ने तुरन्त कहा। 'आप उसे नहीं जानते। मैं जानती हूँ। बड़े अच्छे आदमी हैं।’ निहायत ही शरीफ। ' धनवती की बेसब्री से बोली-‘किसके बारे में कह रही ही, बेटी? ' 'उसका नाम पुष्करनाथ है-पी० डबल्यू० डी० में ओवरसियर है। कान्ता की तरफ देखते हुए प्रभा ने कहा। 'क्या-!, पुष्करनाथ’! ओवरसियर!!' दोनों पति-पत्नी एकदूसरे की ओर देखने लगे। दोनों के मुंह कुछ पल के लिए खुले के खुले रहगये।
बन्सी निर्दोष
जन्म 1 मई, 1930 को श्रीनगर (कश्मीर) के बड़ीयार मुहल्ले में। 1951 तक उर्दू में लिखते रहे, तत्पश्चात् कश्मीरी की ओर प्रवृत हुए। कश्मीरी में इनके तीन कहानी-संग्रह तथा दो उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। बहुचर्चित उपन्यास 'अख दोर' का हिन्दी अनुवाद 'एक दौर’ शीर्षक से हिन्दी विकासपीठ, मेरठ से प्रकाशित। रेडियो के लिए लिखे नाटकों की संख्या सौ से अधिक। प्रकाशित पुस्तकें हैं-‘अख दोर', 'मुकजार' (तलाक), 'गिरदार्ब' (भंवर), 'बाल मरोयो' (मैं बाला मर जाऊँ), 'आदम छुयिथय बदनाम (आदमी यों ही बदनाम है)। (कहानी संग्रह), 'सुबह सादिक', 'अमर कहानी' (जीवनियां) ‘गुरु गोविन्दसिंह', 'कोमुक शायर' (कौम का शायर), आदि। ‘एक कहानी' सीरियल के अन्तर्गत दूरदर्शन के राष्ट्रीय प्रसारण कार्यक्रम में 'मौत’ कहानी का प्रसारण। 'दान थेरे' (अनार की डाली), 'रिश्ते', 'गिरदाब’, 'तफतीश' आदि कहानियों पर टेली-फिल्में निर्मित। जम्मू व कश्मीर राज्य कल्चरल अकादमी द्वारा दो बार पुरस्कृत, बख्शी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा सम्मानित । कश्मीर से विस्थापित होकर जम्मू में स्वतंत्र लेखन और बाद में 21 अगस्त २००१ में स्वर्गवास । वर्तमान पता : 34 आदर्श नगर, बन तालाब, जम्मू (तवी) जे. एंड के ।

कश्मीरी कहानी-लेखन का जीवन-इतिहास लगभग 60 वर्ष पुराना है। अपनी विकास-यात्रा के दौरान कश्मीरी कहानी ने कई मंज़िलें तय कीं। ज़िन शलाका पुरुषों के हाथों कश्मीरी की यह लोकप्रिय विधा समुन्नत हुई, उनमें स्वर्गीय निर्दोष का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है ।निर्दोष की कथा-रचनाएं कश्मीरी जीवन और संस्कृति का दस्तावेज़ हैं । इन में मध्य्वार्गीय समाज की हसरतों और लाचारियों का परिवेश की प्रमाणिकता को केन्द्र में रखकर, जो सजीव वर्णन मिलता है, वह अन्यतम है। कश्मीरी परिवेश को ताज़गी और जीवंतता के साथ रूपायित करने में निर्दोष की क्षमताएं स्पृहणीय हैं। इसी से इन्हें 'कश्मीरियत का कुशल चितेरा' भी कहा जाता है ।

डॉ० शिबन कृष्ण रैणा ने बड़ी लगन् और निष्ठा से निर्दोष की कहानियों का हिन्दी में अनुवाद किया है। उन्हीं के प्रयास से हिन्दी जगत् के सामने ये सुन्दर कहानियां आ गयी हैं। दो भाषाओं के बीच भावनात्मक एकता को पुष्ट करने की दिशा में डॉ० शिबन कृष्ण रैणा का यह प्रयास प्रशंसनीय ही नहीं, अनुकरणीय भी है।
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