Spectacular Lala Vakhs


अभिन्न रूप है लल वाख का!

जया सिबू

ललद्यद् के अन्तर्याग का परिणाम है ललवाख
आकार की अवधारणा
निराकार की परिपूर्णतः
अन्नत रूप से सँवारा

लल दयेद् ने अपनी सुमधुर लोकवाणी से
वस्तुतः दृश्यमान जगत का सार।
पुरुष और प्रकृति ने युगल रूप से कण कण के अणु को
संयोजित किया समादृत किया
प्राकृतिक नियमावली से

.यही तो 'तत्त्व-प्रदान' शैव दर्शन का मर्म कहलाता है।
सृष्टि नियम का पालन किया,उस निराकार ने
ललवाख में कहते जिसे 'शिव'
पृथ्वी ,जल, अग्नि ,वायु और आकाश

कहलाते इसे पञ्च महाभूत ,
शैव की परिभाषा में कहते इसे अंतर्याग

हर तत्व है अनंत
हर तत्त्व की है प्रदानता
यही चित्त्स्फूर्ति है प्रत्यभिज्ञा की।
ॐ शब्द से व्याप्त

वही है -"शिव छू थलि थलि रोज़ान"
यही - है शैव दर्शन का ज्ञान
कलाकार पूजते इसे
तूलिका से सँवारते ,विभिन्न रंगों से सजाते

देते "तत्स्वरूप" का आकार
बन जाते विभिन्न आकार ,

सिमट जाते वैश्विक कनवास पर ,
कागज़ पर छायांकन करते

बनाते शारीर आकार ---
कवि की प्रेरणा उछलती कूदती मचलती
सृष्टि --चित्रण करती शब्दों के संघटन से

अपनी अपनी मन की प्रवृत्ति से.
मेरा नमन है प्रकृति को--

पृथ्वी के कण कण को
कहते जिसेवैज्ञानिक -- अनंत ऊर्जा,

लल द्येद के शब्द - प्रकाश से हुआ

यथा संभव किंचित सा ज्ञान
वही है उस देवी के बीजाक्षर
ललि नलवठ .चलि न .जांह

वाक् /वाख में पिरोये उस ने
आत्म मंथन के स्वानुभव जनित संवाद
महान आत्म- स्वरूपा लल्लदयेद् ने
भाव प्रकाश से प्रेरित विमर्श प्रदान ज्ञान
रमा जिस में है मेरा शब्द अभियान।

उस दिव्य--स्वरूपा को नमन
उस मातृ शक्ति से सीखते हैं हम व्यवहार नियमन
उसी वाख को हमारा अभिनन्दन

वही है समता का विज्ञान

उसी में है - तद्भव का 'जीवन प्राण'
'तत्सम की अपनी व्याख्या महान
शिव ही शिव है यत्र तत्र और सर्वत्र
यही है ललवाख का अद्भुत वरदान।
Jaya Sibu
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