तमाशा

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तमाशा




Ashok Bhatt

बीते युगों की बात नहीं, यह सब तो कल ही है हुआ,

अपनी नगरी, अपना गुलशन, छोड हमें जब जाना पड़ा.

जो प्राणों से प्यारी थी, उस धरती से रिश्ता टूट गया,

जिसे देश अपना समझते थे, वह देश हमारा छूट गया.

ज़ुल्म की भाड़ में बहते गये सब, कोई तो डूब के मर ही गया,

अंधी आग भुजाने का, किसी से जतन कोई न हुआ.

कहीं पे कोई लब न खुला, कोई उंगली ना उठ पाई,

सारी दुनिया बैठी बन के तमाशायी.


अपने ही वत्तन में बे-पनह बना कोई कहाँ है सुना,

किस तहज़ीब का असूल कहाँ कोई ऐसा है बना.

आकाश का छत अपना हुआ, धरती बिछोना बन गयी,

अब तक संभाले रख दी थी, इज़त हे बे परदा हो गयी.

किसी की लाज लूटी कहीं, सिंधूर किसी का मिटा दिया,

सिसकी में हर साँस डूबी, जीना ही मुश्किल होगया.

चारों ओर मचा कोहराम, हर सू तबाही छाई,

सारी दुनिया बैठी बन के तमाशायी.


भाई चारा ओर अमन के हम तो पुजारी थे,

देश प्रेम भी बड़ा था दिल में, वह भी खूब निभाते थे.

शायद इसी की सज़ा दिलादी, हमें घर से बे-घर करा दिया,

थमा के हाथों में लाचारी, हुमको भिखारी बना दिया.

भगवान के नाम को गाली दी, मंदिर में आग लगाई,

सारी दुनिया बैठी बन का तमाशायी.

Comments
Nice Kavita
Added By Nirmal Gupta
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